नमस्कार मित्र ,
आजकल अपने phd थेसिस में काफी व्यस्त हूँ । आप में से कुछ लोगों को मालूम होगा कि मेरे अनुसन्धान का विषय मीडिया, समुदाय और तकनीकी से जुड़ा हुआ है। ख़ास तौर से, अपने थेसिस में मैं इन्टरनेट के उपयोंग में भाषा की भूमिका की जाँच कर रहा हूँ ।
अभी तक मैंने नतीजों के तौर प़र यह पाया है, कि इन्टरनेट के उपयोंग को बढाने में स्थानीय भाषाओं मे websites का उपलद्ध होना अनिवार्य है। यही नहीं, बल्कि तमाम देशों में कंप्यूटर keyboards और सोफ़्त्वैर भी स्थइनीय भाषाओँ मे उप्लब्ध हैं। यह रुझान केवल फ्रांस, जेर्मनी इटली जैसे सम्रध देशों में ही नहीं, बल्कि विएतनाम, इंडोनेसिया, तुर्की जैसे विकासशील देशों में भी मैंने देखे हैं।
भारत में स्थिथि काफी निराशाजनक है। अक्सर कंप्यूटर और अंग्रेजी की कुशलता में सीधा सम्बन्ध देखा जा सकता है । कुछ लोगों केअनुँसर यह समस्या का विषय नहीं है, क्योंकि हर साक्षर भारतीय को अंग्रेजी आती है। परन्तु यह दावा सच्चाई से बहुत दूर है। पिछले 30 वर्षों में भारत में प्रादेशिक भाषाओँ में समाचार पत्रों,पत्रिकाओं, फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों के श्रोताओं में बहुत बढ़त हुई है, जबकि अंग्रेजी मीडिया के दर्शकों में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है।
तो इन्टरनेट के उपयोंग में हम बाकी देशों के मुकाबले इतना क्यों पिछड़े हुए हैं ? मेरे विचार में अगर हम कंप्यूटर शिक्षा और यन्त्र प्रदिशेक भाषा में प्राप्त कराएँ, तो हम इन्तेरेंट के उपयोंग में काफी वृद्धि देखेंगे । परन्तु हमारे देश के करता धर्ता कभी चाहते ही नहीं हैं कि जो अंग्रेजी नहीं बोल सकता , वो आगे बढे और उनको टक्कर दे। ऐसा उन्होने अंग्रेजों से सीखा है, और हर अंग्रेजी में कुशल इंसान अपने आप को उच्च नागरिक मानता है।
हमें शीघ्र ही स्थिथि को सुधारने के लिए कुछ करना होगा ।
हर्ष